भारतीय संस्कृति के मूल तत्व

  • भागवत् शरण शुक्ल .
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Abstract

वेदों में भारतीय संस्कृति को विश्ववारा कहा है। विश्वं वृणोति आत्मसात् करोति स्वोच्चनियमैः या सा विश्ववारा" अर्थात् जो अपने मानवमूल्य के सर्वोच्च आत्मकल्याण कारक आदर्श रूप नियमों से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को अलोकित करे उस संस्कृति को विश्ववारा संस्कृति कहते हैं। इस भारतीय संस्कृति के प्रथम मूल तत्व हैं पुरूषार्थ चतुष्टय-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । धर्म शब्द से केवल वेद प्रतिपाद्य मूल सनातन धर्म ही गृहीत होता है। विश्व में धर्म शब्द से इसके अतिरिक्त अन्य किसी का बोध होता ही नहीं। अन्य सभी सम्प्रदाय ही उपचारातः धर्म पद वाच्य होते हैं मूख्यतः यही सिद्धांत है। शतपथ ब्राह्मण कहता है - "एष धर्मो य एष तपत्येष हीद 20 सर्व धारअत्येनेदं 10 सर्व धृतम्"। अर्थात् यह धर्म ही है जो सभी को परोपकारक नियमों से तपाकर अर्थात् व्यवस्थित कर सभी को धारण करता है परोपकारक त्यागमय उदार सुरील जीवनपद्वति में स्थापित करता है। इसीलिए सम्पूर्ण ब्राह्मण्ड के धारण करने के कारण इसे धर्म कहा जाता है।
Published
2020-04-04
Section
Research Article