दीर्घकालिक फसल-अवशेष प्रबंधन का धान-गेहूं फसल प्रणाली में मृदा के गुणों पर प्रभाव

  • आनंद कुमार सहायक प्राध्यापक-सह-कनिष्ठ वैज्ञानिक, मृदा विज्ञान विभाग, एन॰सी॰ओ॰एच॰, नूरसराय, नालंदा
  • राजीव पद्मभूषण सहायक प्राध्यापक -सह-कनिष्ठ वैज्ञानिक, मृदा विज्ञान विभाग विभाग, एन॰सी॰ओ॰एच॰, नूरसराय, नालंदा
  • अंकेश कुमार चंचल सहायक प्राध्यापक -सह-कनिष्ठ वैज्ञानिक, मृदा विज्ञान विभाग विभाग, एन॰सी॰ओ॰एच॰, नूरसराय, नालंदा
  • अजीत कुमार सहायक प्राध्यापक -सह-कनिष्ठ वैज्ञानिक, मृदा विज्ञान विभाग विभाग, एन॰सी॰ओ॰एच॰, नूरसराय, नालंदा
  • प्रेरणा रॉय सहायक प्राध्यापक -सह-कनिष्ठ वैज्ञानिक, मृदा विज्ञान विभाग विभाग, एन॰सी॰ओ॰एच॰, नूरसराय, नालंदा
  • अचिन कुमार सहायक प्राध्यापक -सह-कनिष्ठ वैज्ञानिक, मृदा विज्ञान विभाग विभाग, एन॰सी॰ओ॰एच॰, नूरसराय, नालंदा
  • विनोद कुमार सहायक प्राध्यापक -सह-कनिष्ठ वैज्ञानिक, मृदा विज्ञान विभाग विभाग, एन॰सी॰ओ॰एच॰, नूरसराय, नालंदा

Abstract

डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, बिहार के अनुसंधान फार्म में चुना उक्त मिट्टी में चल रहे एक दीर्घकालिक क्षेत्रीय प्रयोग में रैंडम ब्लोक प्रायोगिक डिजाइन में चार फसल-अवशेष स्तरों (0, 25, 50 और 100 प्रतिशत) का अध्ययन किया गया। 23वीं गेहूं की फसल के कटाई के बाद मिट्टी के नमूनों का भौतिक और रासायनिक गुणों, जैसे बल्क डेंसिटी, जल धारण क्षमता, वॉल्यूमेट्रिक वाटर कंटेंट, पीएच, ईसी और कैल्शियम कार्बोनेट (ब्ंब्व्3) की मात्रा का विश्लेषण किया गया। फसल-अवशेष पुनर्चक्रण के बढ़ते स्तर से मिट्टी की जल धारण क्षमता, वॉल्यूमेट्रिक वाटर कंटेंट जैसे गुणों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जबकि मिट्टी के पीएच और थोक घनत्व में कमी देखने को मिला । फसल अवशेष प्रबंधन से मिट्टी के उपरोक्त सभी गुणों में सुधार होता है एवं मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता भी बढती है।

Published
2023-10-10