सिंचित वातावरण में धान की उपज पर विभिन्न रोपण तकनीकों और खरपतवार नियंत्रण विधियों के प्रभाव

  • मजहरूल हक अंसारी सस्य विज्ञान विभाग, वीर कुंवर सिंह महाविद्यालय, डुमराँव (बक्सर), बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर-802136
  • सौरभ कुमार सस्य विज्ञान विभाग, वीर कुंवर सिंह महाविद्यालय, डुमराँव (बक्सर), बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर-802136
  • मोहम्मद हाशीम सस्य विज्ञान विभाग, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर
  • नौशाद खान सस्य विज्ञान विभाग, चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कानपुर

Abstract

ारपतवार की वृद्धि, उपज और उपज विशेषताओं पर रोपण विधियों और खरपतवार प्रबंधन प्रथाओं के प्रभाव का आकलन करने के लिए सी.एस. आजाद कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर, उत्तर प्रदेश के स्टूडेंट्स इन्स्ट्रक्शनल फार्म में खरीफ मौसम के दौरान एक क्षेत्रीय प्रयोग आयोजित किया गया था। प्रयोग चार रोपण विधियों (रोपित धान, रोपित धान $ ब्राउन मैनुरिंग (सेसबानिया), सीधी बुआई वाले धान और सीधी बुआई वाली धान $ ब्राउन मैनुरिंग (सेसबानिया) को मेन प्लॉट्स और खरपतवार प्रबंधन विधियों के चार उपचारों (वीडी चेक (डब्लू-1), बिस्पाइरिबैक सोडियम 25 ग्राम/हेक्टेयर $ (क्लोरीमुरॉन $ मेटसल्फ्यूरॉन) 4 ग्राम/हेक्टेयर (डब्लू-2), बिस्पाइरिबैक सोडियम 25 ग्राम/हेक्टेयर $ (क्लोरीमुरॉन $़ मेटसल्फ्यूरॉन) 4 ग्राम/हेक्टेयर $ बुवाई/रोपाई के 45 दिन बाद (डी॰ए॰एस॰/डी॰ए॰ट॰) पर एक बार निराई-गुड़ाई (डब्लू-3), एवं 20 (डी॰ए॰एस॰/डी॰ए॰ट॰) और 45 (डी॰ए॰एस॰/डी॰ए॰ट॰) पर दो बार निराई-गुड़ाई (डब्लू-4), को तीन रेप्लिकेशन के साथ सब-प्लॉट में रख कर किया गया। सभी खरपतवार प्रबंधन विधियों में 20 (डी॰ए॰एस॰/डी॰ए॰ट॰) और 45

Published
2023-10-10