आधुनिक कृषि के लिए सूक्ष्म सिंचाई की भूमिका पर एक समीक्षा

  • कंचन भामिनी नालन्दा उद्यान महाविद्यालय, नूरसराय, नालन्दा (बिहार)-803113
  • अंजनी कुमार बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, कांके, राँची (झारखण्ड)-834006
  • अजीत कुमार नालन्दा उद्यान महाविद्यालय, नूरसराय, नालन्दा (बिहार)-803113
  • पुष्पा कुमारी नालन्दा उद्यान महाविद्यालय, नूरसराय, नालन्दा (बिहार)-803113

Abstract


सिंचाई से आर्थिक लाभ में सुधार होता है तथा रेगिस्तानी एवं अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में सतह सिंचाई से उत्पादकता 400ः तक बढ़ सकती है। हालाँकि, शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पारंपरिक (सतह सिंचाई) सिंचाई के मुख्य मुद्दों में मिट्टी की लवणता, मिट्टी की क्षारीयता, मिट्टी का फैलाव, मिट्टी की बांझपन, जल स्तर में वृद्धि एवं सतह और भूमिगत संसाधनों का प्रदूषण शामिल हैं। अति-सिंचाई प्रथाओं तथा अत्यधिक रासायनिक कृषि-इनपुट अनुप्रयोग के परिणामस्वरूप सूक्ष्म सिंचाई एक ऐसी तकनीक है जिसका उपयोग पानी और पोषक तत्वों को सीधे पौधों की जड़ों तक थोड़ी मात्रा में पहुंचाने के लिए किया जाता है, जो पारंपरिक सिंचाई विधियों के विपरीत है साथ हीजो पूरे खेतों में पानी लागू करते हैं। यह विधि आधुनिक कृषि को कई लाभ प्रदान करती है, जिसमें उच्च पैदावार, बेहतर गुणवत्ता वाली फसलें एवं कम पानी का उपयोग शामिल है। इसलिए, वर्तमान सिंचाई विधियों में सूक्ष्म सिंचाई विधि से प्रति हेक्टेयर 5000.6000घन मीटर सिंचाई पानी की खपत होती है, लेकिन पारंपरिक सिंचाई में प्रति हेक्टेयर 10000घन मीटर से अधिक पानी का उपयोग होता है। इस अध्ययन में तुर्की और दुनिया भर में समकालीन कृषि के लिए कृषि जल की खपत, फसल उत्पादन, पर्यावरण, कुशल उर्वरक उपयोग, स्थिरता और कमाई पर सूक्ष्म सिंचाई प्रौद्योगिकी के प्रभावों पर चर्चा की गई है।

Published
2023-10-10