वैदिक वाड.मय में लोकतन्त्र की अवधारणा

  • सीमा रानी शर्मा असिस्टेन्ट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, हिन्दू कॉलेज, मुरादाबाद
Keywords: लोकतंत्रिक, वैदिक, प्रदर्शित, अवधारणा, राजतंत्र, राजधर्म, अमूल्य, कारक

Abstract

भारत एक लोकतांत्रिक देश है। वैदिक साहित्य में लोकतंात्रिक उन्नत विचार दुनिया में हजारों वर्ष पूर्व ही प्रदर्शित किये जा चुके हैं, उस समय जब लोग कबीलों में रहा करते थें वेदों में लोकतंत्र की अवधारणा के अनेक सन्दर्भ प्रस्तुत किये गये हैं। जिनमें सभा, समिति, पंचजना जैसी लोकतांत्रिक अवधारणाओं की व्याख्या अति प्राचीन है। असंख्य संस्कृत रचनांए समय-समय पर मानव को सही दिशा की ओर ले जाती हैं। वैदिक साहित्य में प्राचीन लोकतंत्र के सन्दर्भ भलिभांति देखने को मिलते हैं। यही कारण है कि वेदों को सृष्टि के आदि संविधान की संज्ञा दी जाती है। राजतंत्र के सभी प्राचीन सन्दर्भों में भी राजधर्म को सभी धर्मों का सार तत्व माना गया है। यही नहीं गणतंत्र को राजधर्म का अमूल्य कारक भी बताया गया है। इससे स्पष्ट है लोकतंत्र की बात हो या गणतंत्र की वैदिक साहित्य दोनों के विचार को दर्शाता है।
Published
2022-08-01