प्रतिभाशाली छात्र एवं छात्राआंे के मूल्यों तथा समायोजन का अध्ययन
Keywords:
दृढ़ संकल्प, अंधकारमय, सैद्धांतिक दृष्टिकोण, कुसमायोजन, कार्यान्वित
Abstract
प्रतिभाशीलता शब्द एक विशेषण है, जिसका तात्पर्य है कि एक ऐसा व्यक्ति जो विशेष रूप से असाधारण योग्यता या बुद्धि से सम्पन्न हो। प्रतिभाशाली व्यक्तियों पर अध्ययन लेविस तरमन के सन् 1925 के कार्य से प्रारम्भ हुआ, जिसमें उन्होने उच्च योग्यता वाले व्यक्तियों की पहचान करने के लिए बुद्धि परीक्षण का प्रारूप तैयार किया। मूल्य अच्छे और बुरे व्यवहार में फर्क बतलाता है। यह हमारे व्यक्तित्व की पहचान तय करता है। शिक्षा देश के विद्यार्थियों के व्यवहार, चरित्र निर्माण, आदतों को एक नया रूप एवं आकार देता है। यह रूप विद्यार्थियों के जीवन में एक नयी दिशा प्रदान करता है। यदि मूल्यों का प्रभाव विद्यार्थियों के जीवन में न हो तो विद्यार्थियों का जीवन अंधकारमय तथा दिशा विहिन होने की संभावना है। अतः प्रत्येक नागरिक को भी यह जानकारी होना आवश्यक है। प्रत्येक विद्यार्थी मूल्यों का विकास करे तथा इन मूल्यों की प्राप्ति के लिए ठोस कदम अपनायें। आधुनिक युग में मूल्यों की प्रोन्नति प्रत्येक विद्यार्थी के जीवन में शक्ति प्रदान करता है। यह उनके जीवन में दृढ़ संकल्प का बीज होता है जो अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए विद्यार्थी अपने जीवन को दाव पर लगा सकता है। विद्यार्थियों के जीवन में मूल्यों की प्राप्ति का मूल्यांकन करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। चूँकि यह भविष्य का नींद या स्तम्भ है। यह उनके लिए एक जवाबदेही और आने वाली पीढ़ी के लिए एक जवाबदेह नागरिक की भूमिका अदा करता है अतः मूल्य शिक्षा न केवल शब्दों में बल्कि कार्यों में परिलक्षित होता है। अतः मूल्य शिक्षा न केवल सैद्धांतिक दृष्टिकोण से बल्कि प्रायोगिक संदर्भ में भी विराजमान है। इस प्रयोगिक मूल्य शिक्षा को उच्च विद्यालय के विद्यार्थियों को भी दी जानी है क्योंकि ये जो आज सीखते हैं उसे कल अपने जीवन में कार्यान्वित करेंगे। समायोजन का अर्थ होता है समाज में एक दूसरे के साथ मिलकर रहना। अतः समायोजन के ही बुनियाद पर मनुष्य जाति प्रगति करता है। विद्यालय समायोजन का होना अति आवश्यक है। सब प्रकार से समायोजित व्यक्ति वह होता है जो पहले तो अपने आप से ही संतुष्ट और समायोजित हो तथा दूसरे अपने चारों ओर फैले वातावरण या परिवेश से उसका सही तालमेल हो। इस दृष्टि से समायोजन के क्षेत्रों को व्यक्ति तथा उसके वातावरण में ही निहित माना जाना चाहिये। एक व्यक्ति की दुनिया जहॉं उसके अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य तथा व्यक्तित्व के महत्वपूर्ण पहलुओं के इर्द-गिर्द घूमती है वहॉं उसे अपने सामाजिक परिवेश तथा काम-काज के क्षेत्रों में भी समायोजित होने की आवश्यकता पड़ती है। समायोजन संबंधी उसकी इन आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए किसी भी व्यक्ति के समायोजन क्षेत्रों को तीन मुख्य भागों - व्यक्तिगत, सामाजिक तथा व्यवसायिक में बॉंटकर समझने का प्रयत्न कर सकते हैं। व्यक्ति अपने आप से कितना समायोजित है इस बात का निर्णय उसके इस क्षेत्र के समायोज स्तर से ही ज्ञान होता है। कोई व्यक्ति किसी क्षेत्र में किस स्तर तक समायोजित है वह इस बात पर निर्भर करता है कि उस क्षेत्र से संबंधित व्यक्ति विशेष की आवश्यकतायें कितनी सीमा तक पूरी होती हैं अथवा उनकी पूरी होने की संभावना व आशा से वह किस सीमा तक संतुष्ट रहता है, जब तक ये आवश्यकताएॅँ पूरी रहती हैं या इनकी पूर्ति की आशा उसे रहती है व्यक्ति समायोजित रहता है विपरीत अवस्था में वह कुसमायोजन का शिकार हो जाता है। अब प्रश्न यह उठता है कि व्यक्ति को अपने आप से समायोजित रखने या संतुष्ट रखने से संबंधित विभिन्न क्षेत्र कौन-कौन से हैं जिनके उपर उसका व्यक्तिगत समायोजन निर्भर करता है।
Published
2022-08-01
Section
Research Article
Copyright (c) 2022 Scholarly Research Journal for Humanity Sciences and English Language
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