सतत और व्यापक मूल्यांकनः एक बुनियादी समझ
Keywords:
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Abstract
शिक्षा बच्चों के सर्वांगीण विकास का आधार होने के कारण प्रारम्भिक स्तर पर एक सार्वभौमिक आवश्यकता है। हमारे राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में शिक्षा का लक्ष्य बच्चों के लिये ऐसी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना है, जिससे बच्चों में प्रजातांत्रिक मूल्यांे व व्यवहारों के प्रति कटिबद्धता, सामाजिक, आर्थिक, लैंगिक व अन्य आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशीलता तथा सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक प्रक्रियाओं में भाग लेने की क्षमता उत्पन्न हो। ‘‘निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009’’ ने शिक्षा को एक ऐसी सतत गतिशील प्रक्रिया के रूप में देखा है, जो बच्चों को गरिमामय जिन्दगी उपलब्ध कराती है और जहाँ बच्चे ’भय’ और ‘तनाव’ से मुक्त होकर ज्ञान का सृजन करते हैं। इसका अभिप्राय यह है कि ऐसी बाल-केन्द्रित एवं बाल अनुकूल शिक्षा हो जो असमानता को दूर करने के साथ-साथ समान शैक्षिक अवसरों को उपलब्ध कराती हो। जाति, धर्म, मत या लिंग के भेदभाव के बिना सभी विद्यार्थियों की पहुंच गुणवत्तापरक शिक्षा तक हो, साथ ही शिक्षा विद्यार्थियों में जिज्ञासा, सृजनशीलता, वस्तुनिष्ठता जैसी योग्यताओं तथा मूल्यों का विकास करते हुए समस्या समाधान तथा निर्णय लेने के कौशल को विकसित करती हो। इन सरोकारों पर चिन्तन करते हुए ‘‘राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005’’ में शिक्षा के लक्ष्य के संबंध में ‘‘बच्चों को क्या पढ़ाया जाय और कैसे पढ़ाया जाय’’ की कसौटी पर व्यापक रूप से विचार किया गया है। इस दस्तावेज में प्रारम्भिक स्तर पर शिक्षा प्रक्रिया में ज्ञान को स्कूल के बाहरी जीवन से जोड़ने, पढाई को रटन्त प्रणाली से मुक्त करने, पाठ्यचर्या को बच्चों के सर्वांगीण विकास का माध्यम बनाने, परीक्षा को लचीली और कक्षा की गतिविधियों से जोड़ने और छात्रों में मानवीय मूल्यांे का विकास करने पर बल दिया गया है। यह समझ भी बनी कि सही मायने में बच्चों की शिक्षा तभी हो पायेगी जब उनके पास इसका अवसर होगा कि वे अखंड अनुभव की पूर्ण रचना कर सके व ज्ञान का सृजन कर सके। प्रारम्भिक शिक्षा का लक्ष्य बच्चों में वैज्ञानिक मनोवृति एवं तार्किक चिन्तन की प्रवृत्ति का विकास करना है ताकि उनमें संस्कृति, परंपरा तथा समुदाय के अंधानुकरण के स्थान पर मानवता के कल्याण, अन्य समुदायों की संस्कृति और परंपरा के प्रति सम्मान विकसित हो और वे गरीबी, लिंग भेद, जाति तथा सांप्रदायिक झुकाव आदि शोषण व अन्यायपूर्ण व्यवहारों से मुक्त हो सकें। शिक्षा का लक्ष्य वैयक्तिक विशिष्टता को सम्मान प्रदान करना भी है। प्रत्येक बच्चे में अपनी योग्यताएँ, क्षमताएँ और कौशल होते हैं जिनके संवर्द्धन से न केवल वैयक्तिक जीवन को बढ़ावा मिलेगा बल्कि समुदाय का जीवन भी समृद्ध होगा। इन शैक्षिक लक्ष्यों की पूर्ति तभी संभव है जब छात्रों के विकास का मूल्यांकन करने के लिए वैध एवं विश्वसनीय पद्धति भी हो। ऐसा अनुभव रहा है कि विद्यालयों में मूल्यांकन का जोर शिक्षा के सरोकारों पर प्रतिपुष्टि प्राप्त करने के स्थान पर यह जानने में रहा है कि कौन-कौन से बच्चे पास या फेल हैं। इसके अतिरिक्त विद्यालयों में लागू मूल्यांकन की पद्धतियाँ शिक्षा के लक्ष्यों के संबंध में समग्र प्रतिपुष्टि (फीडबैक) नहीं प्रस्तुत करती हैं, वरन् केवल चुनिंदा आयामों पर बच्चे के शैक्षिक एवं अकादमिक प्रगति के बारे में ही जानकारी देती हैं। उक्त सीमित उद्देश्यों के दृष्टिगत भी अभी प्रचलित मूल्यांकन व्यवस्था में परिवर्तन की आवश्यकता है।
Published
2021-10-01
Section
Research Article
Copyright (c) 2021 Scholarly Research Journal for Humanity Science and English Language
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