आप्रवासी हिन्दी कहानियों में उपभोगतावादी संस्कृति का संबंधों पर प्रभाव
Keywords:
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Abstract
हिन्दी साहित्य का क्षेत्र विस्तृत फलक पर फैला हुआ है। आप्रवासी लेखन को हिन्दी साहित्य के फैलते हुए फलक का विस्तार कहा जा सकता है। आप्रवासी को विदेशों में बसे भारतीयों का साहित्य, भारतवंशी अथवा भारत के पार का रचना संसार आदि नामों से जाना जाता है। इसका अपना एक अलग समाजशास्त्र है। विस्तृत फलक पर साहित्य का विस्तार होने के कारण इसको एक निश्चित सीमा अथवा किसी एक पैमाने में विश्लेषित नहीं किया जा सकता है। प्रवासी साहित्य के अन्तर्गत मॉरीशस, फिजी, त्रिनिदाद, गुयाना के साहित्य का अपना समाजशास्त्र है। ब्रिटेन में लिखी गई कहानियाँ उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो भारत से अवसरों और पैसों की तलाश में ब्रिटेन और यूरोप तो चले गए। किन्तु वहाँ की संस्कृति, समाज, वहाँ की नीतियों से सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाए और खुद को असहज अनुभव करते हैं। तीव्र औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप पश्चिमी समाज में मानव जीवन अधिकाधिक आराम तलब एवं ऐश्वर्यपूर्ण जीवन शैली का आदी हो गया। मशीनीकरण और यंत्रीकरण के कारण बाजार में नए-नए उत्पाद सर्वसुलभ हो गए। मानव जीवन को इन उत्पादों को परोसने के लिए उसके अवचेतन में छिपी लालसाओं को जाग्रत किया गया और इस कार्य को विज्ञापन जगत् ने आसान बनाया। मानव जीवन अधिक से अधिक सुविधाओं को लूटने की दिशा में अग्रसारित हुआ। जिसके कारण वह भौतिकतापूर्ण जीवन शैली और उपभोगतावादी दर्शन को अपने जीवन में अधिक महत्त्व देने लगा। जिससे समाज में काफी उथल-पुथल और टूट-फूट हुई, मानवीय संबंध छिन्न-भिन्न हो गए। पुरानी मान्यताएँ, परंपराएँ और सिद्धान्त सभी संकट के घेरे में आ गए। आप्रवासी कहानी पश्चिमी समाज के उपभोगतावादी दर्शन के कारण संबंधों में आए बदलाव पर गहनता से विचार-विमर्श करने के साथ-साथ ही एक विकल्प ही खोज भी करती है।
Published
2021-12-01
Section
Research Article
Copyright (c) 2021 Scholarly Research Journal for Humanity Science and English Language
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