गिजुभाई का बाल शिक्षा दर्शन
Keywords:
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Abstract
प्रस्तुत शोध पत्र में गिजुभाई बधेका के शैक्षिक दर्शन का विस्तृत वर्णन किया गया है। उन्होंने आजीवन बच्चों के मनोभावों को समझने व भयमुक्त वातावरण में शिक्षा देने का समर्थन किया। वे वर्तमान शिक्षा प्रणाली से अत्यंत दुखी थे। उनका अनुभव बहुत ही कटु था, बचपन में मिली अनेक यातनाओं का उनके जीवन पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि वह वकालत छोड़कर पूरी तरह से बाल शिक्षा में ही रम गए। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि “मेरे छात्रों को मेरा आदेश है कि घोड़ों के अस्तबल जैसी धूल भरी इन शालाओं को जमींदोह कर दो। मार-पीट और भय दिखाने वाले कत्लखाने की नींव को बारूद से उड़ा दो, इन्हें नेस्तनाबूत कर दो”। इस प्रकार गिजुभाई बालकों की स्वतन्त्रता के प्रबल समर्थक थे। उनका विचार था कि बालकों को स्वतंत्र छोड़कर ही उन्हें अच्छी तरह से शिक्षित किया जा सकता है। वह बच्चों को किसी भी प्रकार का दंड देने के खिलाफ थे और चाहते थे कि सभी लोग बच्चों से प्रेम पूर्वक व्यवहार करें। किसी को भी अपनी इच्छों को बच्चों पर लादने का कोई अधिकार नहीं है और यदि फिर भी ऐसा किया गया तो उसके अत्यधिक घातक परिणाम आ सकते हैं। बच्चों की प्रयोगशीलता एवं सामर्थ्य क्षमता में उनका दृढ़ विश्वास था, उनका मानना था कि बच्चों का अवलोकन करते-करते ही उन्हें आत्मावलोकन का अवसर मिला है। गिजुभाई का कहना था कि “प्रतिपल मैं नन्हें बालकों में बसने वाली महान आत्मा के दर्शन करता हूँ। यह दर्शन मेरे भीतर एक प्रेरणा जगा रहा है कि बालकों के अधिकारों की स्थापना करने के लिए ही मेरा जन्म हुआ है और यही काम करते-करते मैं जिऊँ और यही काम करते-करते मेरी मृत्यु भी हो।” इस शोध पत्र में गिजुभाई की प्रमुख रचनाएं, बाल साहित्य, बाल मनोविज्ञान, बालकों के प्रति माता–पिता के कर्तव्य पर प्रकाश डाला गया है।
Published
2021-10-31
Section
Research Article
Copyright (c) 2021 International Journal of Advanced Scholarly Research Journal for Humanity Science and English Language
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