अधिगम में चाक्षुष प्रत्यक्षण

  • मृदुल कुमार सिंह असिस्टेंट प्रोफेसरए हंडिया पीण्जीण् कॉलेजए प्रयागराज
Keywords: चाक्षुषए प्रत्यक्षणए प्रेक्षणए प्रतिरूपण

Abstract

सीखना या अधिगम ;जर्मनए अंग्रेज़ीरू समंतदपदहद्ध एक व्यापक सतत् एवं जीवन पर्यन्त चलनेवाली महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। मनुष्य जन्म के उपरांत ही सीखना प्रारंभ कर देता है और जीवन भर कुछ न कुछ सीखता रहता है। धीरे.धीरे वह अपने को वातावरण से समायोजित करने का प्रयत्न करता है। इस समायोजन के दौरान वह अपने अनुभवों से अधिक लाभ उठाने का प्रयास करता है। इस प्रक्रिया को मनोविज्ञान में सीखना कहते हैं। जिस व्यक्ति में सीखने की जितनी अधिक शक्ति होती हैए उतना ही उसके जीवन का विकास होता है। सीखने की प्रक्रिया में व्यक्ति अनेक क्रियाऐं एवं उपक्रियाऐं करता है। अतः सीखना किसी स्थिति के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया है।मनुष्य अपने जीवन काल में नित्य ही कुछ ना कुछ सीखता रहता है। सीखने को अधिगम भी कहा जाता है। सीखने की प्रक्रिया में व्यवहारों में परिवर्तन आ जाता है। लिण्डग्रेन के अनुसार सीखने की प्रक्रिया ऐसी प्रक्रिया है। जिसमें शिक्षार्थी अपने व्यवहारों में परिवर्तन लाकर नये.नये संप्रत्ययों को सीखते हैं तथा अपने चिंतन प्रक्रिया को पुर्नसंगठित करते हैंए परंतु वास्तविकता यह है कि शिक्षार्थी सीखते समय जो भी प्रक्रियाएं करते हैं उसे सीखने की प्रक्रिया कहा जाता है। इन प्रक्रियाओं में कुछ का हम अवलोकन कर सकते हैं जैसे लिखना व बातचीत करना। वहीं दूसरी ओर कुछ प्रक्रियाएं अवलोकन योग्य न होते हुए भी महत्वपूर्ण होती हैं जैसे चिंतनए प्रत्यक्षणए स्मृति तथा विस्मृति आदि। सीखने की इन प्रक्रियाओं में अधिगमकर्ता द्वारा अमूर्त सम्प्रत्ययों का संबंध अपने दैनिक जीवन में घटित होने वाली घटनाओं से जोड़ देने पर सार्थक ढंग से सीख पाते हैं। प्रस्तुत शोध पत्र में अधिगम एवं चाक्षुष प्रत्यक्षण की विस्तृत व्याख्या की गयी है।
Published
2021-10-31