भारतीय ज्ञान परंपरा एवं स्वदेशी ज्ञान की वैश्विक परिदृश्य में प्रासंगिकता एवं महत्व

  • गीता सिंह निदेशक, सेंटर फॉर प्रोफेशनल डेवलपमेंट इन हायर एजुकेशन (सीपीडीएचई), यूजीसी-मानव संसाधन विकास केंद्र, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली 110007
Keywords: भारतीय ज्ञान परंपराए स्वदेशी ज्ञानए भारतीय ज्ञान की प्रासंगिकताए

Abstract

किसी भी देश की ज्ञान प्रणाली का मूल घटक उसका स्वदेशी ज्ञान होता है। यह शोध पत्र भारतीय ज्ञान परंपरा एवं स्वदेशी ज्ञान की वैश्विक परिदृश्य में प्रासंगिकता एवं महत्व को परिभाषित करके एक सिंहावलोकन प्रस्तुत करता है जो किसी संस्कृति या समाज के लिए अद्वितीय है और स्थानीय स्तर के निर्णय के लिए आधार बनाता है। भारतीय ज्ञान परंपरा एवं स्वदेशी ज्ञान की विशेषताएं और प्रकार अन्य देशों में सफल स्वदेशी ज्ञान के पहलुओं के साथ सामाजिक विकास पर इसका प्रभाव डालता है। यह ज्ञान एक सांस्कृतिक परिसर का अभिन्न अंग है जिसमें भाषाए सामाजिक प्रणाली का वर्गीकरणए संसाधनों का उपयोगए प्रथाओंए सामाजिक संपर्कए अनुष्ठान और आध्यात्मिकता भी शामिल है। जिसे समय के साथ विकसित किया गया है। भारतीय ज्ञान परंपरा और स्वदेशी ज्ञान से तात्पर्य समाज द्वारा विकसित समझए कौशल और दर्शन से है जिसका अपने प्राकृतिक परिवेश के साथ बातचीत का लंबा इतिहास रहा है। हालाँकि पहले स्वदेशी ज्ञान को विकास और संरक्षण के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर नज़रअंदाज किया गया थाए लेकिन स्वदेशी ज्ञान वर्तमान में एक पुनरुद्धार की ओर बढ़ रहा है और विकास परियोजनाओं में इसका समावेश आवश्यक माना जाता है। कई लोगों का मानना है कि स्वदेशी ज्ञान इस प्रकार एक शक्तिशाली आधार प्रदान कर सकता है जिससे संसाधनों के प्रबंधन के वैकल्पिक तरीके विकसित किए जा सकते हैं। भारतीय ज्ञानए परंपराए सभ्यता एवं सांस्कृतिक जीवन ने विश्व में अपनी गहरी छाप छोड़ी है भारतीय सभ्यता सदैव ही गतिशील रही है एवं इस भारतीय ज्ञान परंपरा और सभ्यता की परंपराओं को दुनिया ने अपनाया एवं लाभ उठाया है। भारतीय ज्ञान परंपरा एवं स्वदेशी ज्ञान एक गतिशील प्रणाली में अंतर्निहित है जिसमें आध्यात्मिकताए रिश्तेदारीए स्थानीय राजनीति और अन्य कारक एक साथ बंधे हैं और एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। शोधकर्ताओं को संस्कृति के किसी अन्य पहलू की जांच करने के लिए तैयार रहना चाहिए जो स्वदेशी ज्ञान को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। प्रस्तुत शोध लेख भारतीय ज्ञान परंपरा एवं स्वदेशी ज्ञान को बनाए रखने और स्वदेशी ज्ञान की रक्षा करने उसके महत्वए विशेषताएं एवं सीमाओं के बारे में व्याख्या करने का प्रयास करता है।
Published
2021-10-31