षोध आलेख समकालीन हिन्दी कविता में राजनीतिक व्यंग्य
Keywords:
collaboration; collaborative learning; kindness; attribute
Abstract
साहित्य से राजनीति के सम्बन्ध को कला के लिए बाधक मानने वाले विद्वानों का मत है कि कालाकार के लिए राजनैतिक प्रेरणा कलात्मक प्रेरणा नहीं है। यदि हम इतिहास के पन्नों को पलटें तो पायेंगे कि हर युग में कविता और राजनीति ने एक-दूसरे को समयानुसार प्रेरित और प्रभावित किया हैं यह प्रभाव कभी प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देता है तो कभी अप्रत्यक्ष में। कवि की पीड़ा समाज की पीड़ा होती हैं इसीलिए चाहे अनचाहे उसका राजनीति से सीधा सम्पर्क हो जाता है। वस्तुतः राजनीति का प्रभाव जीवन के हर क्षेत्र में पड़ता है। ऐसी अवस्था में कवि जैसे सजग प्राणी का राजनीति से अछूता रहना संभव नहीं है। इस विषय की उद्धाटन करते हुए मुक्तिबोध कहते हैं- ‘यह कहना बिलकुल गलत है कि कलाकार के लिए राजनैतिक प्रेरणा कलात्मक प्रेरणा नहीं है, अथवा विषुद्ध दार्षनिक अनुभूति कलात्मक अनुभूति नहीं है-बषर्ते की वह सच्ची वास्तविक, अनुभूति हो, छद्मजाल न हो। यह बिल्कुल सही है कि कलाकार की प्रकृति राजनीतिक या दार्षनिक प्रकृति नहीं है। वह राजनीतिक क्षेत्र में भी जिन आदर्षो को लेकर जाता है वे आदर्ष हृदय के अपरिसीम विस्तार के आवष से सम्बद्ध होने के कारण उस कलाकार के लिए तो कलात्मक ही है।(1) वस्तुतः आज का साहित्यकार राजनीति को कला के लिए बाधक नहीं मानता है क्योंकि वह राजनीति में प्रवीण होने और उससे फायदा उठाने के लिए राजनीति में प्रवीण होने और उससे फायदा उठाने के लिए राजनीति पर कविता नहीं लिखता है बल्कि वह वहाँ मानव जीवन के उन्नयन के लिए संभावनाएं ढूंढता है तथा दिषा परिवर्तन में संलग्न होता है।
Published
2022-05-01
Section
Research Article
Copyright (c) 2022 Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies
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