षोध आलेख कबीर काव्य में पारिवारिक सम्बन्ध और जीवन स्वरूप
Keywords:
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Abstract
कबीर काल में प्रतिविम्बित पारिवारिक जीवन के अनुषीलन के सम्बन्ध में यह बात स्पष्ट है कि कबीर का उद्देष्य जीवन के सम्पूर्ण पक्ष का उद्घाटन न होकर अपनी अध्यात्म साधना को सर्वसुलभ बताना था। ऐसी स्थिति में पारिवारिक जीवन का सम्यक उद्घाटन उनकी वाणियों को प्राप्त कर सकता अपेक्षित भी नहीं है। केवल अपने सिद्धांतों की अभिव्यक्ति के लिए था तो उनके कतिपय अंगों का उपयोग किया है अथवा सामाजिक विकृतियों की आलोचना के प्रसंगों में उनकी एतद्विषयक उक्तियॉ प्राप्त होती है। फिर भी कबीर को पारिवारिक जीवन का और उसके संगठित स्वरूप का पूर्ण अनुभव है। उन्होंने अपने साहित्य में न केवल इसका विवेचन मिला है वरन् पारिवारिक संबंधों की स्थितियों पर भी प्रकाष डाला है। कबीर ने सांसारिक तथा पारिवारिक जीवन को माया के रूप में अध्यात्मिक साधना के मार्ग की बाधा के रूप में ही माना है; परन्तु उनकी साधना पद्धति संसार या परिवार में रहकर अग्रसर होने की थी। इस कारण उनका पारिवारिक जीवन अनुभव स्पष्ट है।
Published
2022-05-01
Section
Research Article
Copyright (c) 2022 Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies
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