वृद्धजनों की मनो-सामाजिक समस्यायें (वर्तमान परिदृष्य)
Keywords:
षब्दावली : वृद्धावस्था, वृद्धाश्रम, प्रस्थिति, मनोसामाजिक
Abstract
वृद्धावस्था मानव जीवन एक गम्भीर, जटिल एवं सार्वभौमिक समस्या है। तीव्र परिवर्तनों के वर्तमान दौर में परिवार की संरचना एवं प्रकार्यो में हो रहे परिवर्तनों के फलस्वरूप परिवार अनाथों, विधवाओं, विधुरों तथा वृद्धों की सहायता एवं सुरक्षा देने का कार्य पूर्व की भाँति नहीं कर पा रहा है। यही कारण है कि आज वृद्धों और परिवार के बीच सफल समायोजन नहीं हो पा रहा है और वृद्धों का पारिवारिक जीवन समस्याग्रस्त हो रहा है। आज की दुनियाँ में वृद्धों को फालतू वस्तु समझने की प्रवृत्ति बढती ही जा रही है, इसलिए वृद्ध लोग वृद्धावस्था से घबराने लगे हैं। वैदिक काल में चार आश्रमों में मनुश्य की आयु को विभक्त किया गया था। प्रथम ब्रह्मचर्य आश्रम में 25 वर्श, द्वितीय गृहस्थ आश्रम 25 से 50 वर्श तृतीय वानप्रस्थ आश्रम 50 से 75 वर्श तथा चतुर्थ सन्यास आश्रम 75 से 100 वर्श तक। इस प्रकार मनुश्य की उम्र 100 वर्श मानी जाती थी, इस काल में मनुश्य तृतीय एवं चतुर्थ आश्रम में वरिश्ठता को प्राप्त करता था वृद्ध व्यक्ति समाज को अपने अनुभवों, सुझावों एवं विचारों से परिपूर्ण कर सकता है। उनके संस्कार, सदाचार तथा प्रत्येक कार्य सकारात्मक व षान्तिप्रिय माने जाते थे। समाज में वृद्धों को जो मान- सम्मान और प्रस्थिति प्राप्त थी, अब वो धीरे-धीरे खत्म होने लगी है। एकल परिवार की बढती प्राथमिकता से पारिवारिक दायरे में बुजुर्ग धीरे-धीरे उपेक्षित होते जा रहे हैं। उनकी सुख-सुविधाओं का खयाल रखना तो दूर की बात है, लोगों के लिए वे भार लगने लगे हैं। इसका एक मुख्य कारण, वर्तमान पीढ़ी की मोबाइल फोन पर बढ़ती हुई निर्भरता भी है। वर्तमान में वृद्धजनों से सलाह लेने के स्थान पर, गूगल पर समाधान ढॅूंढ़ने की प्रवृत्ति में वृद्धि हुई है।
Published
2023-01-01
Section
Research Article
Copyright (c) 2023 Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies
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