स्वामी विवेकानन्द का विचार, दर्शन एवं आदर्श समाजः वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिकता

  • कविता कन्नौजिया एसोसिएट प्रोफेसर, समाजशास्त्र - विभाग, किशोरीरमण महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय,मथुरा।
Keywords: धर्म, दर्शन, आर्दश-समाज, राष्ट्र-निर्माण, चरित्र-निर्माण, राष्ट्र-प्रेम।

Abstract

भारत भूमि पर समय-समय पर अनेकानेक महान् पुरूषों ने जन्म लिया। उन्ही में सें एक स्वामी विवेकानन्द का नाम शीर्षस्थ है जिनके जीवनज्योति से जगतीतल जगमगा उठा है। जिन्होने भ्रमित युवाओं में चेतना को अवलोकित करके उन्हे साहस के साथ आगे बढ़ने, दीन-दुखियों में आशा का संचार भरने, एवं भारतीय धर्म, दर्शन तथा अध्यात्म को विश्वपटल पर पहुँचाने, निष्काम कर्म, सेवा, निष्ठा, को प्रेरित करने वाला आदर्श प्रस्तुत किया। स्वामी विवेकानन्द का जीवन दर्शन निश्चय ही अत्यन्त गौरवपूर्ण और प्रेरणादायक है। जिनके अमूल्य विचारों को अपनाकर एक उत्तम चरित्रयुक्त आदर्श समाज का निर्माण कर सकते है। मानव समाज का इतिहास एक आदर्श समाज बनाने के प्रयास का इतिहास रहा है। इस प्रयास में कितनी सभ्यताए जन्म ली, कितनी लुप्त हो गई। भारत में अनेक ऋषियों, मनिषियों ने वैदिक परम्परा को निरन्तर आगे बढ़ाया। वर्तमान युग में स्वामी विवेकानन्द इसी परम्परा के प्रतिनिधि है। इनके आदर्श समाज दर्शन में अध्यात्म के साथ व्यवाहारिकता दिखाई देती है स्वामी जी के आर्दश समाज की पहली शर्त- ‘रोटी‘ है । धर्म से पेट नही भरता, हमें पहले भोजन देनी होगी। दूसरा तत्व- अध्यात्मिकता का है। क्योंकि धर्म भारत का आत्मा है। स्वामी जी ने स्पष्ट किया है कि धर्म और मजहब एक नही हैं। आर्दश समाज में धार्मिक संकीणता का कोई स्थान नही हैं। धर्म के परिवर्तन का कड़े शब्दों मे आलोचना करते है। तीसरा तत्व -एकता का है, बिना एकता के आदर्श समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है। स्वामी जी ने ब्राम्हणों द्वारा बनाई गई जाति आधारित प्रथा को अमानवीय व शोषण कारी बताया है। जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी इसका उन्मूलन करना होगा। जाति भेद जब तक खत्म नहीं किया जायेगा। तब तक हिन्दू समाज में एकता नहीं आ सकता। आदर्श समाज में ’’शक्ति, सम्पति, बुद्धि, अध्यात्मिक तथा जन्म सम्बन्धि विशेषाधिकार के लिये कोई स्थान नहीं हैं। अतः स्वामी जी का आदर्श समाज भारतीय संस्कृति (वासुदेव कुटुम्बकम) पर आधारित है। इनके विचार केन्द्र में मनुष्य साध्य है, जो समतामूलक, समावेशी समाज का निर्माण करते है। वर्तमान पीढ़ी परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। नैतिक मूल्यों एवं आदर्शों में बदलाव आ रहा है। आज कि युवा पीढ़ी विकास एवं आर्थिक उन्नयन के बोझ तले इतनी अधिक दब गई है कि वह अपने पारम्परिक आधारभूत उच्च आदर्शों को छोड़ने में हिचकिचा भी नही रहा है। स्वामी विवेकानन्द ने एक बार आह्वान किया था-‘उठो, और मंजिल तक पहँुचने से पहले मत रूकों’ और हम सभी एक जुट हो, धैर्य और दृढ़ता से देश के लिए काम करे।‘स्वामी विवेकानन्द की मानवमात्र, प्रकृतिक अधिकारों में आस्था थी उनका प्राकृतिक अधिकारों से तात्पर्य बाधाओं एव अवरोधों को दूर कर देने मात्र से नहीं था, यह हर एक को अपने शारीरिक मानसिक तथा अध्यात्मिक शक्ति के ऐसे र्निवाद प्रयोग के अवसरों से सम्बन्धित है। जिससे किसी और की ऐसी ही स्वतन्त्रता पर आच नही आती हो। हर व्यक्ति को समान रूप से धर्म, शिक्षा व ज्ञान अर्जित करने का प्राकृतिक अधिकार होना चाहिए। स्वामी जी की यह अवधारणा थी की राष्ट्र व्यक्तियों के समूह का नाम है इसलिए हर व्यक्ति में मानव गरिमा तथा सम्मान की भावना जैसे गुणों का विकास करना चाहिए।
Published
2021-11-01