वन एवं आदिवासी
Keywords:
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Abstract
इस लेख में भारत की प्रमुख जनजातियों एवं आदिम जातियों के सम्बन्ध में सामान्य जानकारी दी गयी है। आदिवासियों का वनों से सम्बन्ध एवं वन क्षेत्रों के साथ आदिवासियों के विकास के सम्बन्ध में विचार किया गया है| वर्तमान समय में वन विकास की वही अवधारणा ग्राहय हो सकती है जिसमें आदिवासियों का हित सुरक्षित रहे | राष्ट्रीय वन नीति-4894 एवं 952 द्वारा आदिवासियों को वनों का विरोधी मानते हुये उनके अधिकारों में कटौती की गयी। इससे आदिवासियों का हित प्रभावित हुआ तथा वे भावनात्मक रूप से वनों एवं वन कर्मियों के विरुद्ध हो गये। वनासियों एवं अन्य अनुसूचित जनजाति की समस्याओं के दृष्टिगत भारत सरकार द्वारा 'अनुसूचित जनजाति व अन्य पारम्परिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम-2006 पारित किया गया है। इसमें वनवासिर्यों के अधिकारों को व्यापक मान्यता प्रदान की गई है। इस अधिनियम द्वारा वर्नों एवं आदिवासियाँ के बीच पारम्परिक सम्बन्ध विकसित करने की दिशा में पुनः प्रभावी कदम उठाया गया है।
Published
2013-07-24
Section
Research Article
Copyright (c) 2013 Anusandhan Vigyan Shodh Patrika
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