वैश्विक तापनः वास्तविक संकट कम,मानसिक संकट अधिक

  • प्रेम चन्द्र श्रीवस्तव ूर्व सम्पादक, “विज्ञान“ विज्ञान परिषद प्रयाग, महर्षि दयानंद मार्ग, इलाहाबाद-211002, उ0प्र0, भारत
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Abstract

पयदि हम आज से 60-70 वर्ष पूर्व की दुनिया की तुलना आज की दुनिया से करे तो ऐसा लगता है जैसे हम आज अनेक प्रकार के संकटों से घिरे हुए है। कभी-कभी तो ऐसा लगने लगता है जैसे हम किसी अनजान दुनिया में चले आये हों। जनसंख्या के बढ़ने के साथ ही समस्याएं बढ़ने लगती है। शुद्ध पेयजल की समस्या, वायु मे विषैली गैसों का विसर्जन, रासायनिक उर्वरकों से मिट्टी की गुणवत्ता का नष्ट होना, आवास और जलाने के लिए लकड़ी की जरूरतों में वृद्धि से जंगलों का लगातार काटा जाना, परिणामस्वरूप बाढ़ और सूखे की समस्याएं, मोटर वाहनों, हवाई जहाजों, लाउडस्पीकरों का शोर आदि आदि। इन दिनों वैश्विक तापन(ग्लोबल वार्मिग) अर्थात् पृथ्वी के बढ़ते ताप की समस्या से भारत सहित सभी देश भयाक्रात है।
Published
2014-07-24