अनुसूचित जातियों के सामाजिक समावेशन में शैक्षिक कारकों की भूमिका का अध्ययन

  • अखिलेश कुमार पटेल शोधार्थी, डॉ0 भीमराव अम्बेडकर समाज विज्ञान संस्थान, बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झांसी (उ0प्र0)
  • यतीन्द्र मिश्रा* *एसोसिएट प्रोफेसर बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झांसी (उ0प्र0)

Abstract

प्राचीन काल से भारतीय समाज में अनुसूचित जातियों की स्थिति दयनीय रही है। अनुसूचित जातियों को मानवाधिकारों तथा जीवन जीने के मौलिक अधिकारों से वंचित रखा गया। शिक्षा जैसे मूलभूत अधिकार भी अनुसूचित जातियों को प्राप्त नहीं था। समाज में अनुसूचित जातियों को दोयम दर्जा प्रदान किया गया था। सामातिक स्तरीकरण में अनुसूचित जातियों की स्थिति सबसे निचले पायदान पर थी। विभिन्न सामाजिक प्रतिबन्धों का अनुसूचित जातियों को सामना करना पड़ता था। परणामस्वरूप उनकी स्थिति दिन-प्रतिदिन दयनीय होती गयी। स्वतन्त्रता के बाद अनुसूचित जातियों की स्थिति में सुधार लाने हेतु प्रयास किये गये। भारतीय संविधान में अनुसूचित जातियों के लिए समानता तथा स्वतन्त्रता जैसे महत्वपूर्ण अधिकारों को प्रदान किया गया। अस्पृश्यता उन्मूलन हेतु ‘‘अस्पृश्यता निवारण अधिनियम 1956’’ पारित किया गया। सामाजिक-आर्थिक हितों के संरक्षण के लिए विविध प्रावधान किये गये। संवैधानिक तथा मानवाधिकारों के संरक्षण तथा सामाजिक समावेश के लिए ‘‘राष्ट्रीय अनुसूचित जाति तथा जनजाति अधिनियम 1990’’ के अन्तर्गत राष्ट्रीय अनुसूचित जाति तथा जनजाति आयोग का गठन किया गया।

Published
2022-12-08