गाँधी के पर्यावरणीय चिन्तन की दार्शनिक विवेचना

  • सरिता रानी असिस्टेंट प्रोफेसर महिला महाविद्यालय, काशी हिन्दू विश्विद्यालय, वाराणसी

Abstract

पर्यावरण पृथ्वी पर उपस्थित सभी जैविक एवं अजैविक तत्वों का योग है। जल, वायु, भूमि, पेड़-पौधें एवं जीव जन्तु सभी मिलकर पर्यावरण का निर्माण करते है। इनमें से किसी एक घटक की अनदेखी करने से गम्भीर पर्यावरणीय संकट उपस्थित होता है। जो पर्यावरण प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, जल संकट के रूप में मानव के समक्ष चुनौती प्रस्तुत करता है।

प्राचीन काल से ही भारतीय चिन्तन में पर्यावरण को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। वेद, पुराण तथा अनेक वैदिक साहित्य पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए मानव को सन्देश देते है। महात्मा गाँधी वो महापुरूष थे जिन्होंने वेदों, उपनिषदों में कही गयी बातों को ही अपने जीवन में अपनाया। वर्तमान में उपस्थित पर्यावरणीय संकट को महात्मा गाँधी ने कई वर्षों पहले ही समझ लिया था फलतः उन्होंने अपने विचारों द्वारा मानव को एक संयमित जीवन जीने की शिक्षा दी।  गाँधी मात्र एक व्यक्ति नहीं है वरन एक विचारधारा है जो आज भी अपने दर्शन द्वारा विश्व का पथ आलोकित कर रही है। गांधी अपने राजनैतिक दर्शन, सामाजिक दर्शन व धार्मिक दर्शन के कारण सम्पूर्ण विश्व में जाने जाते हैं किन्तु उनका पर्यावरणीय चिन्तन में भी उनके योगदान को कम नहीं कहा जा सकता है जिसका प्रमाण यह है कि वर्तमान परिस्थिति में अत्यन्त प्रासंगिक दिखता है।प्रस्तुत शोध पत्र में वर्तमान में उपस्थित पर्यावरणीय संकट जैसे बढ़ती जनसंख्या पर्यावरण प्रदूषण, असंयमित जीवन शैली, वनो का काटना इत्यादि विषयों के समाधान के रूप में महात्मा गाँधी द्वारा दिया गया पर्यावरण दर्शन को प्रस्तुत करने का प्रयास किया जायेगा।

Published
2022-12-08