संस्कृत वांग्मय में सर्वजनहित की भावना

  • रिचा माथुर शोधछात्रा-संस्कृत
  • अभिषेक दत्त त्रिपाठी अध्यक्ष, (संस्कृत विभाग) का.सु.साकेत स्नातकोत्तर महाविद्यालय-अयोध्या

Abstract

संस्कृत वांग्मय में सभी जीव , जन के हित की भावना प्रकट होती है वैदिक वांग्मय में तो सर्वजनहित के लिए प्राचीनकाल से भारतीय धरातल पर प्रणीत वेद वांग्मय धरती पर मानवमूल्यों की सुदृढ़ आधारशिला रख चुका है जिसके आधार पर हमारी भव्य संस्कृति की अट्टालिका अपनी पूर्ण गरिमा के साथ खड़ी है हमारे चारों वेद , एक सौ आठ उपनिषद , नाटक महाकाव्य एतिहासिक काव्य मनुष्य को अपने गंतव्य की ओर इस तत्परता के साथ अग्रसर होने की प्रेरणा देते है कि उससे कही भी कोई भी त्रुटि न हो जाये। मानव जीवन हित के लिए आचरणीय सूत्रों को स्वीकार कर उस पर चलने की आवश्यकता है इन आचरणीय सूत्रों के समाहार स्वरूप के अन्तर्गत धर्माचरण, परोपकार, दानशीलता, सत्य वचन, निष्काम सेवा, त्याग, शांति अहिंसा, सौहार्द्र भावना इत्यादि आते है इन सभी का वर्णन सम्पूर्ण संस्कृत वांग्मय में कई शताब्दियों पूर्व हुआ है इन सभी के अभाव में मनुष्य का जीवन एक बंजर भूमि के समान है। इन सभी को मानव अपने जीवन में अपनाकर जीवन को सार्थक बना सकता है-

               हरिः ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ‘

                पूर्णस्य पूर्ण मादाय पूर्णमेवाव शिष्यते ”

Published
2022-12-08