परिवार कल्याण के प्रति थारू जनजातीय महिलाओं की जागरूकता का समाजशास्त्रीय अध्ययन

  • कनिका पाण्डेय एसोसिएट प्रो. समाजशास्त्र साहू राम स्वरूप महिला महाविद्यालय, बरेली
  • अनीता देवी* *एसो.प्रोफे.-समाजशास्त्र डॉ. आर.एम.एल. गवर्नमेण्ट डिग्री कॉलेज, आँवला-बरेली

Abstract

स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में प्रशासनिक एवं आर्थिक दोनो ही व्यवस्थाओं के अन्तर्गत समाज के निर्बल एवं पिछड़े वर्गो के उन्नयन एवं उनको समुचित अधिकार प्रदान करने की नीति को स्वीकार किया गया है। जहॉ तक सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़ेपन की बात है अनुसूचित जनजातियॉ समग्र भारत में पिछड़ी हुई है। वर्तमान समय में थारू जनजाति की अनेक आर्थिक समस्याओं जैसे प्रति व्यक्ति निम्न आय, रहन-सहन का निम्न स्तर, बचत व विनियोग का निम्न स्तर व ऋणग्रस्तता इत्यादि के मूल में जनसंख्या की अत्यन्त तीव्र बृद्धि ही मूल कारण है। अतः इन समूहों की सामाजिक, आर्थिक स्थिति में सुधार हेतु किसी नीतिबद्ध आयोजन हेतु यह आवश्यक है कि विस्तृत सामाजिक व्यवस्था के अंश के रूप में इनके समकालीन स्वरूप को समझा जाए तथा विकास के प्रतिमान क्षेत्रीय व स्थानीय स्तरों पर व्याप्त विषमताओं एवं सामाजिक आर्थिक विभिन्नताओं के व्यापक ज्ञान के साथ-साथ परिवार कल्याण के प्रति जनजातीय महिलाओं की जागरूकता का व्यापक ज्ञान उपलब्ध हो। इसी वैचारिक पृष्ठभूमि के संदर्भ में कुमायूँ प्रखण्ड की थारू जनजाति के अध्ययन के प्रयास को समस्या विशिष्ट की व्यापक परिधि में संकलित करते हुए परिवार कल्याण के प्रति थारू जनजातीय महिलाओं की जागरूकता की अध्ययन किया गया है।

Published
2022-06-06