वाल्मीकि रामायण में वर्णित दूतों के कर्त्तव्य

  • महेन्द्र कुमार उपाध्याय एसोशिएट प्रोफेसर इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग ज.रा.दि. विश्वविद्यालय, चित्रकूट (उ0प्र0)
Keywords: शास्त्रज्ञ, शुभाशुभ, धर्मज्ञ, अवध्य, तन्द्राहीन, दिग्विजय, दौत्य, संदेशवाहक।

Abstract

वाल्मीकि एवं उनकी कृति ‘रामायण’ (आदि महाकाव्य) का काल सुनिश्चित करना विद्वानों के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। विविध मतमतान्तरों के मध्य एक आम धारणा है कि महर्षि वाल्मीकि का काल उत्तर वैदिक काल (1000-600ई0पू0) एवं रामायण का रचनाकाल पाणिनि से पूर्व (500ई0पू0) निर्धारित करना समीचीन प्रतीत होता है।

        भारत में दूत व्यवस्था अति प्राचीन है। संभवतः लोक में राज्य व्यवस्था के निर्माण के साथ ही दूत की आवश्यकता का अनुभव किया गया होगा। सभी राजशास्त्रियों ने राजा के कर्त्तव्य पालन हेतु दूत की उपयोगिता का कथन किया है। ‘दूत’ राज्य का एक आवश्यक अंग समझा जाता था। दूत का शारीरिक संगठन चाहे जैसा भी हो उसे तो केवल ‘दौत्यकर्म’ मे निपुण होना चाहिए।

Published
2022-06-06