बौद्ध स्तूप-वास्तु (उद्भव एवं आरम्भिक संरचना)

  • ज्ञानेन्द्र नारायण राय सेण्टेनरी फेलो- भारत अध्ययन केन्द्र काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी

Abstract

‘स्तूप’ शब्द का प्रयोग भारतीय साहित्यिक परम्परा में वैदिक काल से ही प्राप्त होता है। इस शब्द का आरम्भिक सन्दर्भ सर्वप्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद से ही प्राप्त है। ऋग्वेद की तीन ऋचाओं में ‘स्तूप’ शब्द का उल्लेख हुआ है ---

‘दिव्यं सानु स्तूपैरू’1 अर्थात् ‘दिव्य स्तूप’, ‘वनस्योर्ध्वं स्तूपं’2 उर्ध्व स्तूप अर्थात् ‘ऊँचा स्तूप’, ‘अरुषस्तूपो’3 अरुष का अर्थ ‘कोष’ अथवा ‘सूर्य’ है4 एवं ‘हिरण्यस्तूप’5 में ‘स्तूप’ शब्द का अर्थ ‘ढूहा’ वा ‘ढेर’ है दृ स्वर्ण का ढेर, जैसे कि कृषक अपने धान्य का ढेर लगाता है (स्तूपयति धान्यं कृषकः), इसी प्रकार अमरकोश6 में मिट्टी के ढेर के लिए (मृदादि कूटः एवं राशीकृत मृत्तिकादि) भी इस शब्द का प्रयोग हुआ है।7 बौद्ध स्तूपों की रचना शतपथ ब्राह्मण8 के वर्तुल श्मशान के सन्दर्भ में भी देखने का दृष्टिकोण संकेतित हुआ है।9 बौद्ध काल में बुद्ध के शरीरावशेष को संरक्षित करते हुए स्तूप रचे गए।

Published
2022-06-06