संस्कृत साहित्य में नाटिका साहित्य

  • मुलायम सिंह यादव शोधछात्र- संस्कृत, वी.ब. सिंह पूर्वांचल वि.वि., जौनपुर
  • लक्ष्मी देवी गुप्ता* एसो.प्रोफे. एवम् अध्यक्ष: संस्कृत विभाग गोविन्द बल्लभ पन्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय, प्रतापगंज, जौनपुर (उ.प्र.)

Abstract

दशरूपक के अनुसार नाटक और प्रकरण के मिश्रण को ‘नाटिका’ कहते हैं, जिसका नायक नाटक से लिया गया है और कथावस्तु प्रकरण से। अतः नाटिका के नायक इतिहास प्रसिद्ध व्यक्ति होते हैं। परन्तु इसका वृत्त कवि की कल्पना से प्रसूत होता है। नाटिका के प्रणयन का प्रारम्भ महाराज हर्षवर्धन (सप्तम शती) से होता है।

महाराज हर्षवर्धन की तीन रचनायें हैं-(1) प्रियदर्शिका, (2) रत्नावली तथा (3) नागानन्द। ये तीनों रूपक एक ही लेखक की रचनायें हैं इसमें सन्देह करने के लिए स्थान नहीं है। तीनों में घटनाओं का आश्चर्यजनक साम्य है। रत्नावली में सागरिका अपने चित्तविनोद के लिए राजा का चित्र खींचती है। नागानन्द में जीमूतवाहन उसी उद्देश्य से मलयवती का चित्र बनाता है। दोनोें स्थानों पर चित्रों के द्वारा ही पात्रों के स्निग्ध हृदय तथा प्रणय की कथा का परिचय दर्शकों को मिलता है। रत्नावली में अपमानित होने पर सागरिका अपने गले में लतापाश से बाँधकर प्राण देने का उद्योग करती है। नागानन्द में भी यही घटना है- नायिका मलयवती प्रणय में अनादृत होने से लतापाश से अपने गले को जकड़कर मरने का प्रयास करती है। दोनों स्थानों पर नायक के द्वारा उनके प्राणों की रक्षा होती है। इतना ही नहीं, बहुत से पद्य इनमें परस्पर उद्धृत किये गये हैं। फलतः ये दोनों ही लेखक की लेखनी की सुचारु रचनायें हैं।

Published
2022-06-06