भारतीय संविधान एवं सामाजिक न्याय

  • शिव नन्दन यादव प्रवक्ता- भूगोल विभाग श्रीचन्द्र रा. इ. का. गोसाई गंज, सुलतानपुर

Abstract

समानता लोकतान्त्रिक व्यवस्था और विकास का मूल सिद्धान्त है। समानता से आशय है, जाति, धर्म लिंग, वर्ग आदि के भेदभाव के बिना सभी व्यक्तियों कोे अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए समान अवसर और सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिए। यदि कुछ वर्ग या व्यक्तियों का समूह सामाजिक या क्षेत्रीय विषमताओं के कारण विकास की दौड़ में पीछे रह गया, तो समाज का यह कर्तव्य है कि वह इन्हें विकास की दौड़ में बराबरी पर लाये, समकालीन भारत में राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों के बावजूद निष्पक्ष एवं व्यवहारिक रूप में पिछड़ वर्गों का सामाजिक उत्थान करना चिंतनशील बुद्धिजीवियों के समक्ष एक चुनौती है, स्मरणीय है कि सामाजिक उत्थान एक समतावादी विचार है जिसे प्राप्त करना मनुष्य का मूलभूत अधिकार है और वह एक अर्जित प्रक्रिया भी है, परन्तु भारतीय परिवेश में इस अर्जित प्रक्रिया को आरक्षण प्रदत्त प्रक्रिया बनाने का ‘भगीरथ प्रयास‘हमारे राजनेताओं द्वारा प्रारम्भ से ही किया जा रहा है।

Published
2021-12-06