ग्रामीण सामाजिक संरचना में अनुसूचित जातियों की सामाजिक प्रस्थिति एवं उत्तरदायित्व

  • योगेन्द्र प्रसाद त्रिपाठी ऐसो.प्रो. एवं अध्यक्ष-समाजशास्त्र विभाग का.सु. साकेत पी.जी. कालेज, अयोध्या
  • मीना कुमारी* *शोध छात्रा-समाजशास्त्र डॉ0 राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या (उ0प्र0)
Keywords: प्रतिमान, स्तम्भ, असमानता, समतामूलक, दृढ संकल्प, निर्योग्यताऐं, कुरीतियाँ, सामाजिक न्याय, विषमताऐं, वैश्विक गुरू, शिक्षा का अधिकार

Abstract

भारतीय सामाजिक व्यवस्था में जहाँ चारों वर्णों की भूमिका महत्वपूर्ण थी, किन्तु सबसे निम्न वर्ण अपनी सामाजिक भूमिका के निवर्हन के कारण ही समाज में अछूत समझा जाता था। शिक्षा से वंचित होकर वह स्वयं ही पशुवत जीवन निवर्हन करता रहा, संविधान निर्माताओं द्वारा उनकी पीड़ा उन पर सामाजिक धार्मिक अत्याचार का संज्ञान लेते हुए ही उन्हें समाज में समानता, एवं शिक्षा का अधिकार प्रदान किया जिससे आगे आने वाली उनकी पीढ़ी समाज में बराबरी का स्थान प्राप्त कर सकें। संविधान द्वारा तो समाज के निम्न, कमजोर वर्ग हेतु अनेकानेक प्रावधान किये है, किन्तु इन प्रावधानों के बावजूद सख्त कानून यथा-अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार अधिनियम 1989 को लागू करना पड़ा। क्योकि संविधान ने तो सारे अधिकार प्रदान कर दिये, लेकिन समाज उन्हें अभी वह अधिकार नहीं प्रदान करना चाहता है। इसीलिए अनुसूचित जातियों/जनजातियों पर अत्याचार की धटनाऐं निरन्तर सुनाई पड़ती है।

Published
2021-12-06