खुदी मिटी कि खुदा बने (सूफ़ी-सम्प्रदाय में प्रेम)

  • नितेश उपाध्याय शोधार्थी: भारतीय भाषा केन्द्र जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
Keywords: मारिफत-सिद्धावस्था, फना-लीन होना, बका-नित्यता, अनश्वरता

Abstract

सूफ़ी सम्प्रदाय के समूचे काव्य-चिंतन के केन्द्र में प्रेम का स्थान सर्वोपरि है। सूफ़ी सम्प्रदाय में पुरुष को आत्मा एवं स्त्री को परमात्मा माना गया है। सूफ़ी साधना में आत्मा (पुरुष)-परमात्मा (स्त्री) के प्रेम की अभिव्यक्ति आशिक और माशूक के रूप में की गयी है। विरह-मिलन की अनुभूतियाँ, प्रेम की तड़पन एवं छटपटाहट का मनोरम वर्णन सूफ़ी साधना में चहुँओर विद्यमान है। सूफ़ी साधना में प्रेम एक ऐसी संजीवनी है जहाँ जीवन की सब विरोधी शक्तियाँ स्वयं को मिटाकर एक हो जाती है। केवल प्रेम ही ऐसा क्षेत्र है जहाँ एकत्व और द्वित्व विरोध भाव में नहीं रहते। यही सूफ़ी संप्रदाय में प्रेम का मूल उत्स है।

Published
2021-12-06